"हे भारत कुल भूषण (धृतराष्ट्र), ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं, और उन्नती के लिए कार्य करते व प्रयासरत रहते हैं तथा भलाई करने वालों में अवगुण नहीं निकालते हैं।"- विदुर
कौरव वंश की गाथा में महात्मा विदुर का विशेष स्थान है। और विदुर नीति बेहद खास है। एक तरफ आचार्य चाणक्य की नीति में आदेश-निर्देश का भाव दिखाई देता है, तो दूसरी ओर विदुर नीति में उनके विचार परामर्श के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। ऊपर लिखी पंक्तियों का आशय जानिए और ढूंढिए उस 'धृतराष्ट' को जिसे परामर्श की आवश्यकता है। बिफरे सांसद, तो रद्द करनी पड़ी नगर पालिका परिषद की बैठक
अब इन्हीं पंक्तियों को पैमाना मानिए। फिर परखिए उस 'पंडित' को, जिसने बड़ी ही चतुराई से पहले मोहरों की फितरत जानी और बाद में बिछी बिछाई बिसात पर कब्जा जमा लिया। जहां सियासतदारों ने परमार्थ को लेकर नुख्ता चीनी की। सामाजिक सरोकार के कार्यों में नुक्स निकाले, वहीं 'पंडित जी' ने कर्मठता को प्रणाम किया। कर्मशील व्यक्तित्व के चरणों में झुके। श्रेष्ठता के आगे नतमस्तक हुए। 'नेताजी' अभी भी वक़्त है, सम्भल जाइए!
गाड़ी से उतरे तो मंत्रोच्चार कर दिल जीता। मंच पर चढ़कर नीचे खड़े अंतिम व्यक्ति तक नज़र दौड़ाई। आम इंसान का नाम याद कर उसे खास बनाया। यही तो राजनीतिक परिपक्वता है महाराज! एक सेवक प्रधान बनकर विश्व पटल पर छाया हुआ है। महाशक्तियां जिसके कसीदे पढ़ते नहीं थक रहीं। अब तो कॉफी पीने वाले भी चाय पर चर्चा करते हैं। 'पंडित जी' ने उन्हीं का तो अनुसरण किया। इसलिए जनता से शासक नहीं सेवक बनकर मिले। भलाई करने वालों को सम्मान दिया और श्रेय भी।
सियासत के दांव पेंच में भी 'पंडित जी' की पीएचडी है। 'पर' कतरन (परिसीमन) का गणित भी वे समझ ही गए होंगे! नगर पालिका में पक रही भ्रष्टाचार की खिचड़ी का स्वाद चखने वालों की सूची भी उन तक पहुंच ही गई होगी। तभी तो 'असरकार' के किरदारों को अपरिहार्य कारणों की भनक तक नहीं लगी। हालांकि सरकार के होनहार इससे वाकिफ थे। मुंह किसी ने नहीं खोला। परिसीमन या 'पर' कतरन!
खुलासे के बाद माहौल गरमाया। कांग्रेस के नेता कम भाजपा के ज्यादा हतप्रभ रहे। आश्चर्य ये भी है कि सांसद तक परिषद के बैठक की सूचना नहीं पहुंचने का मामला भाजपा खेमे के पार्षदों ने नहीं उठाया। सीधे सांसद को दखल देनी पड़ी। आगामी नगर पालिका चुनाव को देखते हुए इसके राजनीतिक मायने खूब हैं। ओहदेदारों ने भी संकेत भांप लिए होंगे। इतना समझ लीजिए कि 'पंडित जी' के घोड़े चनों के लालच में नहीं फंसने वाले! परिसीमन पर गंजीपारा वासियों ने दर्ज कराई पहली आपत्ति, बोले- खत्म हो रहा अस्तित्व
इधर कांग्रेस में उधेड़बुन की सियासत छिपी नहीं है। हालही में हुए संसदीय सचिव के कार्यक्रम से दोनों अध्यक्षों को दूर रखा जाना इसका उदाहरण है। इससे खिन्न होकर एक ने यहां तक कहा- 'वे नहीं जानते कि मेरी राजनीतिक पैदाइश भाजपा की है'। क्या इसके ये मायने निकाले जाएं कि पार्टी जरा भी दाएं-बाएं हुई तो घर वापसी हो जाएगी। नहीं! अभी ये कहना जल्दबाजी होगी। हां, ये संगठन में बड़े बदलाव की सूचक जरूर है। बिफरे सांसद, तो रद्द करनी पड़ी नगर पालिका परिषद की बैठक
नगर पालिका चुनाव से पहले दोनों ही प्रमुख पार्टियों में भारी उथल-पुथल मचेगी। नगर में ताकत दिखाने से पहले पार्टी के भीतर वर्चस्व की लड़ाई चलेगी। 'राजा साहब' का फार्मूला तैयार है। वे अपने धुरंधर बल्लेबाजों को मैदान में उतारेंगे। पालिका में 'पंडित जी' के पंच से उनकी रूचि स्पष्ट है। यानी खिलाड़ियों के चयन उनका प्रभाव निश्चित तौर पर दिखाई देगा। फिल्म गालिब में आतंकवादी की मां बनी हैं ‘रामायण’ की ‘सीता’, दीपिका ने शेयर किया पोस्टर
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