इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की नई कुलपति (मोक्षदा) ममता चंद्राकर ने शुक्रवार (24 जुलाई) को पदभार ग्रहण करते ही कहा- ‘कलाकार हूं, मुझे कलाकार पैदा करना है।
खैरागढ़. छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला पद्श्री ममता चंद्राकर ने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति का पदभार ग्रहण करते ही अपना उद्देश्य स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा, ‘छत्तीसगढ़ का लोकसंगीत अथाह सागर है। इसमें से मोती चुनना है। शिक्षा में हो सरगम मुहिम से मैं खुद जुड़ी हुई हूं, कोशिश करुंगी कि प्राइमरी की शिक्षा में संगीत के कोर्स शुरू किए जाएं।
रागनीति से खास बातचीत के दौरान उन्होंने अपना उद्देश्य साझा किया और कहा, ‘डिग्री-डिप्लोमा बहुत बंटोरते हैं, घर बैठे भी मिल जाते हैं लेकिन संगीत एक साधना है। इसे साधकर ही एक आर्टिस्ट बनता है, और आर्टिस्ट बनाना ही मेरा पहला उद्देश्य है।’
कुलपति चंद्राकर ने कहा, ‘अथाह सागर है लोकसंगीत। छत्तीसगढ़ के लोकसंगीत को एक जन्म में पूरा नहीं किया जा सकता। इसी सागर से मोती चुनकर निकालना है। इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी है। हमारी पूरी कोशिश होगी कि ज्यादा से ज्यादा मोती बंटोर पाएं।
जैसे ही प्राइमरी स्कूल में संगीत और कला के कोर्स की शुरुआत का सवाल पूरा होने से पहले ही वे बोलीं, ‘मैं बताना चाहूंगी आपको, इस प्रोजेक्ट से मैं खुद बहुत पहले से जुड़ी हुई हूं। प्राइमरी लेवल पर ही बेस तैयार करना होगा। इसके बिना कैसे हो सकेगा?’
वे छत्तीसगढ़ की भावी पीढ़ी में संगीत और कला के प्रति रुझान पैदा करने के साथ ही विश्वविद्यालय के डिग्री धारियों को लेकर भी चिंतित दिखीं। कहा, ‘हर कोई परफार्मिंग आर्टिस्ट नहीं बन सकता। हमारे स्टूडेंट भी तो निकल रहे हैं, वे कहां जाएंगे? उन्हें भी तो जॉब चाहिए। जब तक प्राइमरी स्तर पर कोर्स शुरू नहीं करेंगे, हमारे विद्यार्थी ऐसे ही भटकते रहेंगे।’ शिक्षा में हो सरगम मुहिम को लेकर उन्होंने कहा, ‘मैं खुद रायपुर की संस्था के साथ इस मुहिम से जुड़ी हुई हूं। हमने बहुत पहले इसे शुरू किया था। कुछ व्यस्तता की वजह से इसमें बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाई।’ ‘हम देखेंगे कि शासन से क्या सुविधा ले सकते हैं और हम इसमें क्या योगदान दे सकते हैं। प्राइमरी स्कूल में संगीत व कला की शिक्षा दी जानी चाहिए और मैं पूरी कोशिश करुंगी कि ऐसा हो।
विश्वविद्यालय के रिकॉर्डिंग स्टूडियो के उपयोग को लेकर कुलपति चंद्राकर ने कहा कि वे इस पर स्टडी करेंगे। देखेंगी कि कहां तक हो पाया है और उसकी संभावनाएं क्या हैं। उन्होंने कहा,‘स्टूडियो के लिए कलाकारों को अलग तालीम की आवश्यकता होती है। मैं देखूंगी कि इसमें कितनी संभावनाएं हैं।’ कुलपति चंद्राकर 1977 से 1981 तक खैरागढ़ विश्वविद्यालय की छात्रा रही हैं। उन्होंने पांच साल हॉस्टल में रहकर संगीत की शिक्षा पाई। इसके बाद 2014 में उन्हें डी लिट की उपाधि दी गई। आज वे इसी विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। उन्होंने ने अपने बिताए लम्हों को याद करते हुए कहा , ‘मैं पांच साल रही हूं यहां। पहली सीढ़ी चढऩे का अनुभव यहीं मिला। वह हरेक पल मुझे याद आया। मैं विश्वविद्यालय परिसर में घूमते वक्त मैं यह महसूस कर रही थी।
विश्वविद्यालय की कुलपति बनने वाली दूसरी छात्रा हैं ममता ममता चंद्राकर दूसरी छात्रा हैं, जो अपने ही संगीत विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद पर पहुंचीं। इससे पहले प्रो. मांडवी सिंह को यह अवसर प्राप्त हुआ था। प्रो. मांडवी ने कुलपति के रूप में दो कार्यकाल पूरे किए।