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रायपुर आकाशवाणी को ‘सुर-सिंगार’ और खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय को रेडियो दे गए लाल राम कुमार

लाल रामकुमार सिंह; जन्म 27 अगस्त 1937; मृत्यु 26 दिसंबर 2020,  शिक्षक की नौकरी छोड़कर उदघोषक की भूमिका में आए, फिर कर्मा, ददरिया, भरथरी जैसी विधाओं का किया संकलन।

डॉ. नत्थू तोड़े. खैरागढ़

आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम आप मन के गीत को ‘सुर सिंगार’ का नाम देने वाले वरिष्ठ उदघोषक और राजपरिवार के सदस्य लाल राम कुमार सिंह हमारे बीच नहीं रहे। ‘आपके मीत ये गीत’ की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी। कोरोना काल से पहले जनवरी में जब वे विश्वविद्यालय पहुंचे, तो उनके हाथ में रेडियो था, जिसे मुझे सौंपकर केवल इतना कहा- ‘ए रेडियो ल हमेशा चलाना, अउ लइका मन ल जरूर सुनाना’।

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इसी से आकाशवाणी से लगाव और खैरागढ़ व संगीत विश्वविद्यालय से उनके प्रेम को समझा जा सकता है। उनका दिया हुआ रेडियो लोकसंगीत विभाग के लिए किसी धरोहर से कम नहीं। वैसे भी जब 1978-79 के दौरान इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में लोक संगीत विभाग की स्थापना हुई थी, तब तत्कालीन कुलपति अरुण सेन ने उन्हें विशेष तौर पर छत्तीसगढ़ी में संचालन करने के लिए आमंत्रित किया था। तब से एक जुड़ाव सा हो गया।

बातचीत में बीते दिनों के किस्से सुनाया करते थे। आकाशवाणी में आने से पहले 1968-69 में वे विक्टोरिया स्कूल के शिक्षक थे। इस दौरान इंदौर आकाशवाणी से उदघोषक का इश्तहार निकला। तब स्कूल के हेडमास्टर ने उनका आवेदन लिखा और एक पैसे के लिफाफे में उन्होंने यह आवेदन इंदौर भेजा था। साक्षात्कार के बाद उन्हें चुन लिया गया। वे इंदौर में काम करने लगे। कुछ दिनों बाद नागपुर आकाशवाणी से केसरी बाजपेयी यानी बरसाती भैया का तबादला इंदौर हुआ।

दोनों की मुलाकात हुई। कुछ दिन बीतने के बाद खबर मिली की रायपुर में भी आकाशवाणी की स्थापना होने जा रही है। उनसे (लाल राम कुमार जी) रायपुर तबादले के लिए पूछा गया, तो वे सहर्ष तैयार हो गए। इस तरह बरतसाती भैया के साथ वे रायपुर आ गए। यहां फील्ड में जाकर काम करना शुरू किया। लोकगाथाओं और लोकगीतों का संकलन करने लगे। ददरिया, कर्मा, भरथरी आदि की रिकॉर्डिंग उन्हीं के समय की है। कवि जीवन यदु के गीत… छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया धान का कटोरा… की रिकार्डिंग खैरागढ़ के बीटीआई में हुई थी। तब यहां के प्राचार्य केएन श्रीवास्तव थे।

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वे आज भी गांव जाने से कभी नहीं कतराते थे। वहां बच्चों से बात करते और बातों ही बातों में उम्र दराज महिलाओं से रस्मों के गीत गवा कर रिकार्डिंग कर लिया करते थे। शायद, उनके इसी हुनर की वजह से आकाशवाणी ने उन्हें लोकगीतों के संकलन की जिम्मेदारी दी। उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी। आज भी कर्मा, सुआ, पंथी, ददरिया आदि को लेकर उनके द्वारा सहेजे गए गीत आकाशवाणी से प्रसारित होते हैं।

दो साल पहले 2018 में उनके प्रोत्साहित करने पर ही मैंने एक रूपक की रचना की, जिसका नाम था कला तीर्थ खैरागढ़। जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रसारित हुआ। एक साल बाद 2019 में डॉ. गोरेलाल चंदेल की किताब आई, झेंझरी। इसके पात्र कारी ने उन्हें खासा प्रभावित किया, जो एक दलित महिला थी और सामंतवाद के खिलाफ खड़ी थी। वे अक्सर कहते कि इस पर रूपक लिखेंगे। लोकगीतों की बात चलती तो कुलपति ममता चंद्राकर के गाए गीत… गोड़ के गंवा गे बिछिया गंगाजल… गोड़ के गंवा गे बिछिया… का जिक्र करना नहीं भूलते थे। कहते, आंख बंद कर सुनो तो पूरा दृश्य नजर आने लगता है।

घर आने की सूचना देने का अंदाज भी निराला था

बातचीत में एक खास बात उन्होंने मुझे बताई थी कि जिस दिन उन्हें खैरागढ़ आना होता, उस दिन के कार्यक्रम का अंतिम संवाद वे खास अंदाज में किया करते। वह कुछ इस तरह कहते… हमारा प्रसारण यहीं समाप्त होता है, कल शाम को फिर से इसी स्टूडियो में मुलाकात होगी, तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिए। उनका इतना कहते ही घर वाले समझ जाते थे कि खाना तैयार रखना है।

आकाशवाणी मेेरी जिंदगी है…

श्रद्धांजलि सभा में वरिष्ठ उदघोषक दीपक हटवार ने बताया कि छत्तीसगढ की फिजाओं में लाल रामकुमार की आवाज पहले भी तैरती थी, आज भी है और हमेशा रहेगी। रिटायर होने के बाद भी वे आकाशवाणी में बने रहे। वे कहते थे आकाशवाणी मेरी जिंदगी है और आकाशवाणी में मैं अंत तक बना रहूंगा।

(लेखक, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के लोकसंगीत विभाग में संगतकार हैं।)

 

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Last modified on Tuesday, 29 December 2020 14:02

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